सरकार की तरफ से परंपरागत ऊर्जा की जगह हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) को बढ़ावा देने के प्रयास का नतीजे अब दिखने लगे हैं। अब सबकुछ ठीक रहा तो वर्ष, 2030 तक पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन के आयात में गिरावट से एक लाख करोड़ रुपये तक की बचत का अनुमान लगाया गया है। इसके अलावा इस अवधि तक कार्बन उत्सर्जन में सालाना पांच करोड़ टन की कमी भी आएगी।

वित्त मंत्रालय की आर्थिक समीक्षा के अनुमान के मुताबिक वर्ष 2030 तक देश में ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन क्षमता 50 लाख टन तक हो जाएगी। जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी के साथ इसके आयात को घटाने के उद्देश्य से पिछले साल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन लांच किया गया था।

80 प्रतिशत पेट्रोल-डीजल का आयात

भारत अपनी जरूरत का 80 प्रतिशत पेट्रोल-डीजल का आयात करता है। ग्रीन एनर्जी को बढ़ावा देने के लिए सरकार फास्टर एडाप्शन एंड मैन्यूफैक्चरिग आफ इलेक्टि्रक व्हीकल्स (फेम) स्कीम लेकर आई थी, जिसकी मदद से दोपहिया वाहनों की कुल बिक्री में इलेक्टि्रक वाहनों की हिस्सेदारी छह प्रतिशत से अधिक हो गई है।

इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन के लिए गत दिसंबर तक देशभर में 10,000 चार्जिंग स्टेशन की स्थापना हो चुकी है। देशभर में मेट्रो का जाल 450 किलोमीटर तक पहुंच गया है। वर्ष 2014 में मेट्रो रेल की सेवा पांच शहरों में थी जो वर्ष 2023 तक बढ़कर 21 शहरों में हो गई।

 

सोलरऔर अन्य ग्रीन एनर्जी की उत्पादन क्षमता में हुई भारी वृद्धि

वित्त मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले नौ सालों में सोलर व अन्य ग्रीन एनर्जी की उत्पादन क्षमता में भारी बढ़ोतरी हुई है। सोलर की उत्पादन क्षमता में वर्ष 2014 के मुकाबले 25 गुना बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2014 में सोलर की उत्पादन क्षमता सिर्फ 2600 मेगावाट थी जो नवंबर 2023 में 76,000 मेगावाट हो गई थी।

ग्रीन एनर्जी पर पूरी तरह शिफ्ट होना बड़ी चुनौती

गैर जीवाश्म बिजली उत्पादन की क्षमता पिछले नौ सालों में 80,000 मेगावाट से बढ़कर 1.87 लाख मेगावाट तक पहुंच गई। हालांकि सरकार यह भी मानती है कि ग्रीन एनर्जी पर पूरी तरह से शिफ्ट होना बहुत बड़ी चुनौती है और इससे हमारी मैन्यूफैक्चरिंग लागत भी बढ़ेगी।

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